ritikal ki visheshtaen : रीतिकाल की प्रमुख विशेषताएँ

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रीतिकाल की परिभाषा (Ritikal Ki Paribhasha) –

ritikal ki visheshtaen अब आपको हम यंहा पर रीतिकाल क्या है, Ritikal Ki Paribhasha Bataiye, रीतिकाल किसे कहते है, ritikal ki visheshtaen रीतिकाल काल की विशेषताएँ और रीतिकाल के कवि और रचनाएँ के बारे में बताने वाले है.

रीतिकाल का से आशय ऐसा काव्य जो अलंकार, रस, गुण, ध्वनि, नायिका भेद आदि की काव्यशास्त्रीय प्रणालियों के आधार पर रचा गया हो और इनके लक्षणों के साथ या स्वतंत्र रूप से इनके आधार पर काव्य लिखने की पद्धति ही रीति नाम से विख्यात हुई और यह पद्धति जिस काल में सर्वप्रधान रही उसे ही रीतिकाल कहते है.

रीति’ शब्द संस्कृत के काव्यशास्त्रीय ‘रीति’ शब्द से भिन्न अर्थ रखने वाला है। संस्कृत साहित्य में रीति को ‘काव्य की आत्मा मानने वाला एक सिद्धान्त है, जिसका प्रतिपादन आचार्य वामन ने अपने ग्रन्थ ‘काव्यालंकारसूत्र’ में किया था- ‘रीतिरात्मा काव्यस्य’।

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ritikal ki visheshtaen

रीतिकाल की प्रमुख विशेषताएँ


1-आश्रयदाताओं की प्रशंसा- इस काल के कवि राजाओं के आश्रय में रहते थे। वे उन्हीं के गुण गाते थे।

2-जनता की उपेक्षा- रीतिकाल के कवि अपनी रचनाओं में नायक-नायिका के प्रेम प्रसंग का वर्णन करते थे। वे आम जनता के बारे में कुछ नहीं लिखते थे।

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3- पांडित्य प्रदर्शन- इस युग के कवियों ने दूसरे कवियों से स्वयं को श्रेष्ठ दिखाने के लिए कठिन काव्य लिख दिए। जो सामान्य लोग पढ़कर समझ ही नहीं पाए।

4- नायक और नायिका भेद- रीतिकाल के कवियों ने नायक तथा नायक भेद को लेकर, उनके प्रेम और सौंदर्य का चित्रण किया है।

5- अश्लील वर्णन- इस काल के कवियों ने शृंगार रस के चित्रण में कई अश्लील वर्णन किए हैं।


रीतिकाल की प्रमुख विशेषताएं बताइए :


6- नारी के प्रति दृष्टिकोण- इस युग की रचनाओं में नारी को भोग की वस्तु के रूप में चित्रित किया गया है।

7-प्रकृति चित्रण- रीतिकालीन कवियों ने प्रकृति के सुंदर चित्र खीचें हैं।

8- रीति का प्रयोग- इस युग के कवियों ने रीति परंपरा को अपनाया है जैसे- नायिका भेद, सौंदर्य वर्णन, लौकिक शृंगार आदि प्रमुख हैं।

9-मुक्तक शैली का प्रयोग- रीतिकालीन कवियों ने अपनी रचनाओं के लिए मुक्तक शैली का विशेष प्रयोग किया है।

10- अलंकारों का प्रयोग- रीतिकाल के अधिकांश कवियों ने अपनी रचनाओं में अलंकारों का खूब प्रयोग किया है।

11- छंदों का प्रयोग- इस युग के कवियों ने छंदों के प्रयोग से कविता को कठिन कर दिया है।

12- ब्रजभाषा का प्रयोग- रीतिकाल के कवियों ने अपनी काव्य-रचनाओं के लिए ब्रजभाषा का प्रयोग किया है।

13- अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन- रीतिकाल के कवियों ने नायिका के सौंदर्य को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया है।

14-श्रृंगार के दोनों पक्षों का चमत्कार वर्णन- इस काल के कवियों ने अपनी रचनाओं के दोनों पक्षों संयोग और वियोग शृंगार का वर्णन किया है।


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ritikal ki visheshtaen रीतिकाल काल की विशेषताएँ :-

श्रृंगारिकता :

श्रृंगारिकता इस काव्यधारा की ही नहीं, इस काल के साहित्य की भी सर्वाधिक मुखर प्रवृत्ति रही है.

इस काल के कवि ने श्रृंगार रस के विभिन्न अवयवों, विभाव, अनुभाव, संचारी,इत्यादि के वर्णन, नायिका भेदोपभेदों, उनकी सूक्ष्म श्रृंगारिक मन:स्थितियो क उद्घाटन ऋतु आदि के वर्णनों में कवियों ने जितनी सरस और मार्मिक उक्तियाँ प्रस्तुत की है.

इस धारा के कवियों ने श्रृंगार के संयोग और वियोग- दोनों ही पक्षों का पूरे मनोवेग से चित्रण किया है.

सुदरता का वर्णन :-

रीतिबद्ध श्रृंगारिकता काव्य के मुख्य आलंबन नायक-नायिका रहे हैं.

इन दोनों में नायिका की अंग-ज्योति की ओर कवियों की दृष्टि अधिक रही है. नख-शिख वर्णन के सारे प्रसंग इसके प्रमाण है लेकिन हाव अनुभावादि के चित्रण में यह रूप – सौन्दर्य अधिक मार्मिक होकर सामने आया है.

अलंकारिकता :-

चमत्कार प्रदर्शन की प्रवृत्ति रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्ति रही है. चमत्कार का मतलब ही है अलंकार प्रधान होना.

तत्कालीन रीतिबद्ध कवि अलंकारों पर अधिक ध्यान देते था. वह इन अलंकारों पर विशेष ध्यान दिया है.

जैसे : अनुप्रास, यमक. इससे काव्य में मधुरता आती है.
आश्रदाता भी कविता का मर्मज्ञ नहीं होता था. उसे शब्दों के चमत्कार और उसकी गेयता से ही अधिक मतलब होता था.

नारीचित्रण :-

नारी के प्रति रीतिकालन कवियों का दृष्टिकोण भोगवादी रहा है.

रीतिबद्ध कवि देव, मतिराम, केशव हो चाहे रीतिसिद्ध कवि बिहारी हो अथवा रीतिमुक्त कवि घनान्द, बोधा या आलम हो, सभी दृष्टि नारी के प्रति भोगवादी रही है.

श्रृंगार भाव की इतनी बेकदरी और नारी के प्रति इतनी गिरी गुई दृष्टि हिन्दी साहित्य में कभी नहीं प्रकट हई. रीतिबद्ध कवि दरबारी बनकर जन समाज से कट गये थे.

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रीतिकालीन कविता इसीलिए समाज के प्रति उपेक्षा पूर्ण दृष्टिकोण रखती है. उसके अश्रदाताओं के लिए नारी का संबल एक विलास स्थल बन गया था.

बृजभाषा की प्रधानता-

बृजभाषा रीतिकालीन युग की प्रमुख साहित्यिक भाषा है। यह काल बृजभाषा का चरमोन्नति काल है।

इस समय बृजभाषा में विशेष निखार, माधुर्य और प्रांजलता का समावेश हुआ और भाषा में इतनी प्रौढ़ता आई कि भारतेंदु काल तक कविता के क्षेत्र में इसका एकमात्र आधिपत्य रहा और आगे के समय में भी इसके प्रति मोह बना रहा।

नायिका भेद वर्णन-

रीतिकालीन कवियों को भारतीय कामशास्त्र से बड़ी प्रेरणा मिली थी। कामशास्त्र में अनेक प्रकार की नायिकाओं का वर्णन है।
युग की श्रृंगारी मनोवृत्ति ने वहाँ से प्रेरणा पाकर तथा युग के सम्राटों, राजाओं और नवाबों के हरम में रहने वाली कोटि-कोटि सुन्दरियों की लीलाओं, काल चेष्टाओं, आदि से प्रभावित होकर साहित्य में नायिका-भेद के रूप में उनकी अवतारणा की थी।

ॠतु वर्णन-

रीतिकालीन काव्य की एक प्रवृत्ति ॠतु वर्णन की रही है। रीतिकालीन कवियों ने अधिकतर ॠतु वर्णन उद्दीपन के ही रूप में किया है.
ॠतु वर्णन के साथ-साथ ॠतु विशेष में होने वाली क्रीड़ाओं, मनोविनोदों, वस्त्राभूषणों, उल्लासों की भरपूर व्यंजना कवियों ने की है।
इनके अतिरिक्त कवियों ने ऋतु विशेष में होने वाले तीज त्यौहारों के भी संश्लिष्ट चित्र खींचे हैं।

लाक्षणिकता तथा वाग्वैदग्ध्य-

रीतिकालीन कविता में लाक्षणिक-प्रयोग भी प्रचुर मात्रा में दृष्टिगोचर होते है।
इन कवियों ने लाक्षणिक-प्रयोग के माध्यम से प्रिय-वियोग में प्रेम की कसक, व्याकुलता दीनता एवं आतुरता का मर्मस्पर्शी चित्रण किया है।
रीति कवियों की निरीक्षण क्षमता, उनकी पकड़ और विदग्धता कई स्थानों पर देखते ही बनती है।

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रीतिकाल के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ

नाम रचनाएँ
बिहारी बिहारी सतसई
भूषण शिवराज भूषण, शिवाबवनी, छत्रसाल
मतिराम रसराज, ललित ललाम
देव भाव विलास, भवानी विलास
पद्माकर जगत विनोद, गंगा लहरी
घनानन्द सुजान सिंह, इश्क लता
सेनापति कविरात्नाकर, काव्यकल्पद्रुम

रीतिकाल के कवि और रचनाएँ-

कवि (रचनाकर) रचनाएं
चिंतामणि कविकुल कल्पतरु, रस विलास, काव्य विवेक, शृंगार मंजरी, छंद विचार
मतिराम रसराज, ललित ललाम, अलंकार पंचाशिका, वृत्तकौमुदी
राजा जसवंत सिंह भाषा भूषण
भिखारी दास काव्य निर्णय, श्रृंगार निर्णय
याकूब खाँ रस भूषण
दूलह। कवि कुल कण्ठाभरण
देव शब्द रसायन, काव्य रसायन, भाव विलास, भवानी विलास, सुजान विनोद, सुख सागर तरंग
सुखदेव मिश्र रसार्णव
रसलीन रस प्रबोध
दलपति राय अलंकार लाकर
बिहारी बिहारी सतसई
रसनिधि रतनहजारा
घनानन्द सुजान हित प्रबंध, वियोग बेलि, इश्कलता, प्रीति पावस, पदावली
आलम आलम केलि
बोधा विरह वारीश, इश्कनामा
द्विजदेव श्रृंगार बत्तीसी, श्रृंगार चालीसी, श्रृंगार लतिका
पद्माकर भट्ट हिम्मत बहादुर विरुदावली (प्रबंध)
सूदन सुजान चरित (प्रबंध)
खुमान लक्ष्मण शतक
जोधराज हमीर रासो
भूषण शिवराज भूषण, शिवा बावनी, छत्रसाल दशक
वृन्द वृन्द सतसई
दीन दयाल गिरि अन्योक्ति कल्पद्रुम
गिरिधर कविराय स्फुट छन्द
गुरु गोविंद सिंह सुनीति प्रकाश, सर्वसोलह प्रकाश, चण्डी चरित्र
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