✿छायावाद युग की परिभाषा & प्रमुख विशेषताएं ✿
छायावाद की परिभाषाएँ :
Chhayawad ki visheshtayen :आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास में द्विवेदी युग के बाद हिंदी की जिस काव्य धारा ने हिंदी साहित्य को आगे बढ़ाया, Chhayawad ki visheshtayen उसे ‘छायावाद’ कहते हैं। विषयवस्तु की दृष्टि से स्वच्छंद प्रेम भावना, प्रकृति में मानवीय क्रियाकलापों व भाव-व्यापारों के आरोपण तथा कला की दृष्टि से लाक्षणिकता प्रधान नवीन अभिव्यंजना-पद्धति आदि छायावादी काव्य की मूल विशेषताएँ हैं।
छायावाद की प्रमुख विशेषताएं :
- श्रृंगार रस का प्रयोग– छायावादी युग की कविताओं में श्रृंगार रस का प्रयोग किया गया है। इस युग का काव्य मुख्य रूप से श्रृंगारी है। यह श्रृंगार अतीन्द्रिय सूक्ष्म श्रृंगार है। छायावाद का यह श्रृंगार कौतूहल और विस्मय का विषय है।
- व्यक्तिवाद की प्रधानता–छायावादी कवियों ने अपनी कविताओं में व्यक्तिगत भावनाओं को अभिव्यक्त किया है। उन्होंने कविताओं के माध्यम से अपने सुख-दुख और हर्ष-शोक वाणी प्रदान करते हुए प्रस्तुत किया है।
- प्रकृति का अनूठा चित्रण–छायावादी कवियों ने प्रकृति के विभिन्न रूपों का अपनी रचनाओं में चित्रण किया है। प्रकृति पर मानव व्यक्तित्व का आरोप छायावादी काव्य की अनूठी विशेषता है।
- सूक्ष्म आंतरिक सौंदर्य का चित्रण–छायावादी काव्य में सूक्ष्म आंतरिक सौंदर्य का चित्रण किया गया है। बाह्य सौंदर्य की तुलना में आंतरिक सौंदर्य को अधिक महत्व प्रदान किया गया है।
- काव्य में वेदना और करुणा की अधिकता–छायावादी काव्य में वेदना और करुणा की अधिकता पाई जाती है। छायावादी युग के समाज के करुणामयी होने के प्रमुख कारण हृदयगत भावों की अभिव्यक्ति की अपूर्णता, अभिलाषाओं की विफलता आदि हैं।
- अज्ञात सत्ता के प्रति प्रेमभाव– अज्ञात सत्ता के प्रति छायावाद के कवियों में हृदयगत प्रेम की अभिव्यक्ति पाई जाती है। इस अज्ञात सत्ता को कवि प्रेयसी और चेतन प्रकृति के रूप में देखता है। यह ज्ञात सत्ता ब्रह्म से अलग है।
- नारी के प्रति नवीन भावना– छायावादी काव्य में श्रृंगार और सौंदर्य से तात्पर्य नारी से है। नारी केवल प्रेम की पूर्ति का साधन मात्र नहीं है। यह भाव जगत की सुकुमार देवी है। रीतिकालीन नारी के विपरीत छायावादी नारी अधिक सजग थी। उसे सम्मानजनक स्थान प्रदान किया गया था।
- जीवन-दर्शन– छायावाद में जीवन के प्रति भावात्मक दृष्टिकोण को अपनाया गया है। काव्य का मूल दर्शन सर्वात्मवाद है। संपूर्ण जगत मानव चेतना से स्पंदित दिखाई देता है।
- अभिव्यंजना शैली का प्रयोग– छायावादी कवियों ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने हेतु प्रतीकात्मक और लाक्षणिक शैली का प्रयोग किया है। कवियों ने भाषा में अमिधा के स्थान पर लक्षणा तथा व्यंजना का उपयोग किया है।
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प्रेम चित्रण – छायावादी कवियों के प्रेम चित्रण में कोई लुका छिपी नहीं है .क्योंकि इसमें स्थूल क्रिया व्यापारों का चित्रण नहीं मिलता है या न के बराबर मिलता है .यह चित्रण मानसिक स्टार तक सिमित है .अतः इसमें मिलन की अनुभुतीओं की अपेक्षा विरहानुभूति का व्यापक चित्रण है ,निराला की कविता स्नेह निर्भर बह गया है .पन्तकृत ग्रंथि तथा प्रसाद कृत आँसू एवं आत्मकथा में ऐसे ही प्रणय चित्रण है .
- रहस्यवाद – छायावादी कविता में रहस्यवाद एक आवश्यक प्रवृति है .यह प्रवृति हिंदी साहित्य की एक आदि प्रवृति रही है .इस कारण छायावाद के प्रत्येक कवि ने एक फैशन अथवा व्यक्तिगत रूचि से इस प्रवृति को ग्रहण किया . यदि निराला ने तत्व ज्ञान के कारण इसे अपनाया ,तो पन्त ने प्रक्तितिक सौन्दर्य अभिभूत होकर और महादेवी वर्मा ने अतिशय प्रेम और वेदना के कारण इसे तन मन में बसाया ,तो प्रसाद ने परम सत्ता को बाहरी संसार में खोज की दृष्टि से .
प्रसाद –
मधुराका मुस्काती थी पहले देखा जब तुमको
परिचित-से जाने कब के तुम लगे उसी क्षण हमको।
जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक पर स्मृति सी छायी
दुर्दिन में आँसू बन कर वह आज बरसने आई।
- लाक्षणिकता – छायावादी कविता में लाक्षणिकता का अभूतपूर्व सौन्दर्य भाव मिलता है .इन कवियों से सीधी सादी भाषा को ग्रहण कर लाक्षणिक एवं अप्रस्तुत विधानों द्वारा उसे सर्वाधिक मौलिक बनाया है .मूर्त में अमूर्त का विधान उनकी सबसे बड़ी विशेषता है .प्रसाद की कविता बीती विभावरी में लाक्षणिकता की लम्बी श्रृंखला है
बीती विभावरी जाग री!
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा नागरी!
खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा
किसलय का अंचल डोल रहा
लो यह लतिका भी भर लाई-
मधु मुकुल नवल रस गागरी
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छंद विधान – छंद के लिए भी छायावादी काव्य उल्लेखनीय है .इन कवियों ने मुक्तक छंद और ऋतूकान्त दोनों प्रकार की कविताएँ लिखी हैं .इसमें प्राचीन छंदों के प्रयोग के साथ – साथ नवीन छंदों के निर्माण की प्रवृति भी मिलती है .
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अलंकार विधान – छायावादी कवियो में हिंदी के प्राचीन अलंकारों के साथ – साथ अंगेजी साहित्य के दो अलंकारों मानवीकरण तथा विशेषण विप्रे का अधिकाधिक प्रयोग किया है .प्राकृतिक दृश्यों के चित्रण में मानवीकरण है .विशेषण विपर्याय में विशेषण को स्थान से हटाकर लाच्श्कों द्वारा दूसरी जगह आरोपित किया जाता है .
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- आत्माभिव्यक्ति :छायावादी कवियों ने अपने अनुभवों को ‘मेरा अनुभव’ कहकर अभिव्यक्त किया.
- प्रकृति प्रेम :छायावादी कवियों ने प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन किया और उससे प्रेम का भी वर्णन किया.
- राष्ट्रीयता :छायावादी कवियों ने अपनी रचनाओं के ज़रिए राष्ट्रप्रेम को अभिव्यक्त किया.
- रहस्यवाद :छायावादी कविता में अलौकिक प्रेम या रहस्यवाद की प्रवृत्ति भी रही.
- स्वच्छंदतावाद :छायावादी कविता में स्वच्छंदतावाद की प्रवृत्ति रही.
- कल्पना :छायावादी काव्य व्यक्तिनिष्ठ और कल्पना-प्रधान है.
- दार्शनिकता :छायावादी काव्य में वेदांत से लेकर आनंदवाद तक का प्रभाव दिखाई पड़ता है.
- शैलीगत प्रवृत्तियां :छायावादी काव्य में मुक्तक गीति शैली का प्रयोग हुआ.
- छंद गठन :छायावादी कवियों ने छंद गठन में अभूतपूर्व काम किया.
- शब्द योजना :छायावादी कविताओं में शब्द योजना में प्रगाढ़ता, मधुमयता, और विविधता रही.
छायावाद की समय सीमा 1918 से 1936 के बीच मानी जाती है
छायावादी कवि एवं उनकी रचनाएँ
छायावाद के प्रमुख कवि एवं उनकी महत्वपूर्ण रचनाएँ निम्नलिखित हैं–
1. जयशंकर प्रसाद– कामायनी (महाकाव्य), आँसू, लहर, झरना।
2. सुमित्रानंदन पंत– पल्लव, गुंजन, ग्रंथि, वीणा, उच्छवास।
3. महादेवी वर्मा– नीरजा, रश्मि, निहार, सांध्यगीत।
4. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’– परिमल, गीतिका, तुलसीदास, अनामिका।
5. रामकुमार वर्मा– चित्र-रेखा, निशीथ, आकाशगंगा।
Chhayawad ki visheshtayen (प्रवृत्तियाँ)
- आत्माभिव्यक्ति
- नारी-सौंदर्य और प्रेम-चित्रण
- प्रकृति प्रेम
- राष्ट्रीय / सांस्कृतिक जागरण
- रहस्यवाद
- स्वच्छन्दतावाद
- कल्पना की प्रधानता
- दार्शनिकता
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